अगर आप भी इस मंच पर कवितायेँ प्रस्तुत करना चाहते हैं तो इस पते पर संपर्क करें... edit.kavitabazi@gmail.com

Monday, December 26, 2011

चाहा था उन्हें




कसूर इतना था कि चाहा था उन्हें 
दिल में बसाया था उन्हें कि 
मुश्किल में साथ निभायेगें 
ऐसा साथी माना था उन्हें |
राहों में मेरे साथ चले जो
दुनिया से जुदा जाना था उन्हें
बिताती हर लम्हा उनके साथ
यूँ करीब पाना चाहा था उन्हें
किस तरह इन आँखों ने
दिल कि सुन सदा के लिए
उस खुदा से माँगा था उन्हें
इसी तरह मैंने खामोश रह
अपना बनाना चाहा था उन्हें |
- दीप्ति शर्मा

1 comment:

  1. लाजवाब कविता अतिसुन्दर लेखन चाहत की एक अजीब से कशमकश भरी अधूरी प्यास लिए अतृप्त को तृप्त करती प्रस्तुति के लिए बधाई की पात्र है दीप्ति शर्मा बहुत खूब लगता है दिल से लिखा है इसलिए बार बार पढता हूँ कविता " चाह था उन्हें " |

    ReplyDelete