अगर आप भी इस मंच पर कवितायेँ प्रस्तुत करना चाहते हैं तो इस पते पर संपर्क करें... edit.kavitabazi@gmail.com

Wednesday, December 7, 2011

तू भी नहीं अब तेरा एहसास भी नहीं ,उगते हुए सूरज को तेरी आस भी नहीं


तू भी नहीं अब तेरा एहसास भी नहीं
उगते हुए सूरज को तेरी आस भी नहीं

दोस्ती कि कितनी झूठी दुहाई दोगे' के
अब दोस्ती के तू आस पास भी नहीं

कितनो को दोस्त कहके तू ने यहाँ लूटा 'कि
अब रहा किसी का तुझ पर विश्वास भी नहीं

कब तक गिनाते रहोगे वो एक एहसान अपना'कि
'मनी'इनको होगा कभी इसका एहसास भी नहीं

तू भी नहीं अब तेरा एहसास भी नहीं
गते हुए सूरज को तेरी आस भी नहीं
'''''''''''''''''''''''मनीष शुक्ल

6 comments:

  1. दोस्ती कि कितनी झूठी दुहाई दोगे' के
    अब दोस्ती के तू आस पास भी नहीं
    .....वाह जनाब ...क्या बात है...!

    ReplyDelete
  2. चंद पंक्तिया और बेहतरीन अभिव्यक्ति.....

    ReplyDelete
  3. इस पोस्ट के लिए धन्यवाद । मरे नए पोस्ट :साहिर लुधियानवी" पर आपका इंतजार रहेगा ।

    ReplyDelete
  4. बहुत खूब कही है यह ग़ज़ल आपने .आपकी टिप्पणियाँ भाई साहब स्पेम में जा रहीं थीं अभी रिलीज़ करवाएँ हैं .आभार .

    ReplyDelete
  5. वीरू भाई आपका बहुत बहुत आभार ,,,,,और उचित समय पर जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

    ReplyDelete