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अगर आप भी इस मंच पर कवितायेँ प्रस्तुत करना चाहते हैं तो इस पते पर संपर्क करें... edit.kavitabazi@gmail.com
Monday, September 19, 2011
स्पर्श: समझो गर तुम
स्पर्श: समझो गर तुम
: शिकायत नहीं है वफ़ा से तुम्हारी फिर भी तन्हाइयों के पास हूँ | उलझी हूँ अपनी ही क...
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तेरे लाज के घूँघट से
मत कहो सच
प्रेमी जमाना होता
ए अजनबी तेरे आने का'' शुक्रिया
नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं......!
ये जीवन क्यूँ भारी लगता है?
ये धरा नहीं है, जन्नत है
प्रगति......
नाजायज भी जायज है
जीवन के छंद
स्पर्श: समझो गर तुम
नींद
हिंदी दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें
ये मदिरालय
स्पर्श: अस्तित्व की तलास
ऐसा देश है मेरा.....
हमारी जिद
शुक्रिया जनाब
याद
गुलाब
तुझको मिले अब तो चाहत तेरी
०५ सितम्बर शिक्षक दिवस एवं १४ सितम्बर हिंदी दिवस व...
बहुत उलझे हुए है अपने ही लोग
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