उमड़ आयी बदली
तेरे लाज के घूँघट से
द्वार पर खड़ी तू
बेतस बाट जोहती
झलक गये तेरे केशू
तेरे आँखों के अर्पण से |
पनघट पे तेरा आना
भेष बदल गगरी छलकाना
छलक गयी गगरी तेरी
तेरे लाज के घूँघट से |
सजीले पंख सजाना
प्रतिध्वनित वेग से
झरकर गिर आयी
तेरे पाजेब की रुनझुन से |
रागों को त्याग
निष्प्राण तन में उज्जवल
उस अनछुई छुअन में
बरस गयी बदली
तेरे लाज के घूँघट से
उमड़ आयी बदली
तेरे लाज के घूँघट से
- दीप्ति शर्मा
www.deepti09sharma.blogspot.com
sanjay ji
ReplyDeletebahut bahut hi achhi rachna subah -subah padhne ko mili.waqai dipti ji ki kavita naari ke swarup ko bahut hi shandaar tareeke se
prastut karti hai.iske liye dipti ji ko tatha aapko itni sundar rachna padhwane ke liye
bahut bahut badhai
poonam
सुंदर कविता
ReplyDeleteग़ज़ल पसंद आए तो कृपया LIKE करें
here for the 1st time great blog..! :) . and congratulations it feels really awsum when your hard work pays off.! :)
ReplyDeleteIndia is a land of many festivals, known global for its traditions, rituals, fairs and festivals. A few snaps dont belong to India, there's much more to India than this...!!!.
Visit for India
सच मच बहुत ही सुन्दर है आपकी कविता दीप्ती जी
ReplyDeleteDirection of Life...: चाहत...
मधुर वाणी: !...!...मुकद्दर...!...!