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Sunday, September 4, 2011

गुलाब


सुर्ख गुलाब की टहनी से,
लिपटी बूंद,
पूछ रही थी कांटों से,
तुम क्यूं उग जाते हो?
तभी मेरे दिल में चुभी थी याद तेरी,
आंखों से बह निकली थी बूंद,
आंसुओं ने फिर कहा था,
उस तरह,
इक गुलाब की याद में,
चुभता है जो दिल में,
जरुरी होता है,
किसी को गुलाब बनाने के लिये,
खुद कांटा हो जाना?



  • रविकुमार बाबुल



2 comments:

  1. सुन्दर अभिवयक्ति....

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  2. बेहद सुन्दर कविता --मन को छूने वाली अनुभूति --

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