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Saturday, February 25, 2012

चाहता हूं मैं


आओ समेट लें हम,
अपने-अपने हिस्से की यादें,
तुम मेरी यादों को छोड़ देना,
कहीं-किसी बीच राह में।
मैं तुम्हारी यादों को,
रखूंगा सहेजकर सदा अपने पास।
क्यूंकि हम दोनों की यादों ने,
कभी मिलकर की,
गूफ्तगूं आपस में।
तब बे-पर्दा हो जाएगी,
मेरी आदत और तुम्हारी रवायत?
तुम ही नहीं यादें भी तुम्हारी,
शर्मिंदा न हो चाहता हूं मैं।

  • रविकुमार बाबुल

चित्र : साभार गूगल

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर विचार...
    शुभकामनाएँ.

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