आओ समेट लें हम,
अपने-अपने हिस्से की यादें,
तुम मेरी यादों को छोड़ देना,
कहीं-किसी बीच राह में।
मैं तुम्हारी यादों को,
रखूंगा सहेजकर सदा अपने पास।
क्यूंकि हम दोनों की यादों ने,
कभी मिलकर की,
गूफ्तगूं आपस में।
तब बे-पर्दा हो जाएगी,
मेरी आदत और तुम्हारी रवायत?
तुम ही नहीं यादें भी तुम्हारी,
शर्मिंदा न हो चाहता हूं मैं।
- रविकुमार बाबुल
चित्र : साभार गूगल
bahut khub...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विचार...
ReplyDeleteशुभकामनाएँ.