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Wednesday, February 22, 2012
अनबुझी प्यास
एक वो था,
जो सारा समन्दर,
अपने प्रेम का,
मुझको सौंप देना चाहता था।
एक तुम हो,
जिसके पास मेरे लिये,
प्रेम का एक कतरा भी नहीं है।
यह मेरे नसीब की साजिश है,
या फिर,
उसकी बद्दुआ रही होगी?
जो रह गई,
मेरी प्यास अनबुझी,
तुम्हारे होते हुये भी।
रविकुमार बाबुल
चित्र : साभार
1 comment:
सदा
February 23, 2012 at 1:53 AM
यह मेरे नसीब की साजिश है,
या फिर,
उसकी बद्दुआ रही होगी?
वाह ...बहुत खूब लिखा है आपने ...
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यह मेरे नसीब की साजिश है,
ReplyDeleteया फिर,
उसकी बद्दुआ रही होगी?
वाह ...बहुत खूब लिखा है आपने ...