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Friday, February 10, 2012

मेरे लिये


प्रिय,
बस एक बार सुलझा दो,
पहेली मेरे जीवन की।
मेरे दिल की जमीं पर,
बो दो तुम कोई बीज।
उसका प्रस्फुटन होने से,
नहीं रोकूंगा कभी,
वह चाहे मुहब्बत हो या नफरत?
बस इन दोनों में से,
कुछ भी चुनों,
तुम मेरे लिये।

  •  रवि कुमार बाबुल

2 comments:

  1. अनोखे भाव,
    अनूठी कविता !!

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  2. सुन्दर भावों को प्रभावी शब्द दिए हैं आपने.खूबसूरत रचना.

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