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Friday, February 10, 2012
मेरे लिये
प्रिय,
बस एक बार सुलझा दो,
पहेली मेरे जीवन की।
मेरे दिल की जमीं पर,
बो दो तुम कोई बीज।
उसका प्रस्फुटन होने से,
नहीं रोकूंगा कभी,
वह चाहे मुहब्बत हो या नफरत?
बस इन दोनों में से,
कुछ भी चुनों,
तुम मेरे लिये।
रवि कुमार बाबुल
2 comments:
महेन्द्र वर्मा
February 10, 2012 at 6:51 AM
अनोखे भाव,
अनूठी कविता !!
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संजय भास्कर
February 10, 2012 at 8:53 PM
सुन्दर भावों को प्रभावी शब्द दिए हैं आपने.खूबसूरत रचना.
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अनोखे भाव,
ReplyDeleteअनूठी कविता !!
सुन्दर भावों को प्रभावी शब्द दिए हैं आपने.खूबसूरत रचना.
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