हम मुहब्बत के पुजारी हैं मुहब्बत की कसम।
जिसको भी सजदा करेंगे वो खुदा हो जाएगा॥
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भेलनी के बेर जूठे थे ये कैसे देखते।
राम तो हैरत में थे जंगल में इतना प्यार है॥
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निभाना खून के रिश्ते बहुत आसान नहीं होता।
गुजर जाती है सारी जिंदगी खुद से लड़ाई में॥
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बहला रही है भूख को पानी उबाल कर।
वो मां है दिखा देगी बच्चों को पाल कर॥
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कैसे करवट वक्त ने बदली है लोगों देखिए।
दर दर फिरते थे जो वो आज रहबर हो गए॥
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बनाओ शहर में कुछ खुशनुमा इमारतें भी।
मगर बुजुर्गो की कुछ यादगार रहने दो॥
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ये झूठों का जमाना है, कोई सच बात मत कहना।
चुनांचे रात बेशक हो मगर तुम रात मत कहना॥
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गरदो गुबार, शोर, धुंआ और भीड़-भाड़।
मैं रह रहा हूं ऐसे बवालों के शहर में॥
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कितनी दीवारें उठी हैं एक घर केदरमियां।
घर कहीं गुम हो गया, दीवारों दर के दरमियां॥
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मोहब्बत जिंदगी केफैसलों से लड़ नहीं सकती।
किसी को खोना पड़ता है किसी का होना पड़ता है॥
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घुटने लगता है दम सियासत का । जब फिजा खुशगवार होती है॥
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होठों पे तबस्सुम की दुकानें तो सजी हैं, चेहरे पे मगर रौनके बाजार नहीं है॥
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मैं तो इक इंकलाब हूं यारो, वक्त लगता है मुझको आने में॥
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कौन जी पाया है इन्दु यहां अपनी तरह, जिंदगी अस्ल में बस एक अदाकारी है॥
संकलन-प्रस्तुति- इंदू भूषण पाण्डेय
संपर्क- 9415434249
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर मन के भाव ...
ReplyDeletewah.
ReplyDeleteनिभाना खून के रिश्ते बहुत आसान नहीं होता
ReplyDeleteगुजर जाती है सारी जिंदगी खुद से लड़ाई में
जवाब नहीं।
बहुत गहरी बातें हैं।