हमारे मोहल्ले के टशनी मित्र गोपेश्वर प्रसाद त्रिपाठी उर्फ़ गोपू। ये उनका उर्फ़ वाला नाम हम दोस्तों की देन है। वैसे गोपू भाई शुरवात में मतलब जब हम लोगों की संगती में आये थे तब वो टशनी वशनी तो बिलकुल नहीं थे. एक सीधे सच्चे बच्चे थे। फिर बातों के साथ गलियों का ऐसा मिश्रण हुआ की मानो शरबत में नींबू नीचोड़ कर दे दिया हो किसी ने। वैसे बीप बीप वाली जुबान के मालिक गोपू आज कल दूसरी ही भाषा बोल रहे हैं। जैसे हँसते हैं तो कहते हैं लोल, कुछ बुरा लग जाए तो बोलते हैं व्हाट द ऍफ़, और ज़्यादातर तो अपने टशनी फ़ोन के साथ ही लगे रहते हैं। हम दोस्तों से ज्यादा वो उन दोस्तों से बातें करते हैं। खैर अपन को कोई शिकायत नहीं, अपन तो फ़क्कड़ी आदमी हैं, दोस्त को अपन ने वहां भी पकड़ लिया। पर साला अब अबे की जगह हाय बोलना पड़ता है। खैर गोपू से फेस टू फेस न सही फेसबुक पर तो मुलाक़ात हो ही जाती है।

इसका एक तो फर्क पड़ा, अब वो पुरा
ना वाला गोपू वापस मिल गया जो की हमसे पहली बार मिलने आया था। मतलब बिना गाली वाला सीधा बच्चा, इश्क जो न कराये वो कम।
ना वाला गोपू वापस मिल गया जो की हमसे पहली बार मिलने आया था। मतलब बिना गाली वाला सीधा बच्चा, इश्क जो न कराये वो कम।
वैसे उस प्यार के चक्कर में उसने शहर के न जाने कितने और कहाँ कहाँ चक्कर लगाये, ऐसा लग रहा था कोई टीचर किसी बिगडैल बच्चे को जानबूझ कर ऐसा टास्क दे रहा है जिससे उसका ज्ञान भी बड़े और सजा भी मिले। पर यहाँ तो न कोई टीचर था और न ही कोई स्टूडेंट, यहाँ था तो ट्शनी की चाशनी से बहार आ चूका गोपू और उसका अनदेखा, अंजना (एकौर्डिंग टू हिम फेसबुक पर मिला और जाना पहचाना) प्यार। खैर अपनी ही दुनिया में मस्त गोपू मोबाइल और लैपटॉप से चिपका रहने वाला वो लड़का अब एक मीटिंग ही चाहता था, पर ये उसकी चाहत थी, हर चाहत हकीकत हो ये जरूरी तो नहीं। वैसे इतना सब होते हुए भी उसने किसी को कुछ नहीं बताया, पर एक दिन जब उससे नहीं रहा गया तो मुझसे बोलने लगा " यार नीरज ये बताओ की किसी को बिना देखे बिना मिले, या फिर केवल फेसबुक ( ये शब्द उसके मुह से अचानक निकल गया) पर मिले प्यार हो सकता है क्या?" मैंने कहाँ यार ये तो अपनी अपनी सोंच है वैसे के बार मिलकर ही फैसला लेना चाहिए दोस्त नहीं तो दिल टूटता है और उसकी आवाज़ तक नहीं आती है।
शायद उसको ये बात कुछ जमी, और उसने उस पर मिलने के लिए खूब जोर डाला, और मीटिंग फिक्स हुई वो बड़ा बनठन के मिलने पहुंचा हाथों में गुलाब, आँखों में महंगा सा चश्मा अच्छी सी शर्ट पेंट और बेहद कीमती पर्फियुम से नहाकर। थोड़ी देर इंतज़ार के बाद उसको बताये हुए रंग (पिंक) की शर्ट और जीन्स में एक लड़की नुमा लड़का पहुंचा, उसे यकीन नहीं हुआ, उस वक्त उसे लगा की जो उसकी सोंच है वही सही है ये जो नज़र आ रहा है ये भ्रम है इसी लिए उसने मुस्कुराकर वेलकम करते हुए जब अपन हाथ बढाया तो उसका अहसास भी उसकी सोंच की तरह ही कोमल था। मगर कहते हैं की जब सच का झोंका चलता है तो झूठ के सारे महल ढ़ह जाते हैं। वही हुआ जैसे ही उसने मुह खोला गोपेश्वर प्रसाद त्रिपाठी उर्फ़ गोपू का सारा भ्रम फुर्र हो गया। फिर क्या था वो वहां से ऐसे भाग जैसे वहां आया ही न हो।
वैसे सुना है की फेसबुक पर प्यार तो नहीं मिला पर फेसबुक से उसका प्यार अभी भी बरकरार है। लोग तो कहते हैं गोपू की खोज जारी है और उसकी लड़कियों को फ्रेंड रिक्वेस्ट सेंडिंग भी जारी है।
No comments:
Post a Comment