तन्हाईयों से कहो चुप रहे, चीखना-चिल्लाना जरूरी था।
दिल को कौन दिलाए यकीन, उसका जाना जरूरी था।
अपने जागने का सबब यह कहकर छिपाया सबसे मैंने,
चांद सो न जाये, इसलिये मेरा जागना जरूरी था।
यह शर्त कहां थी मेरी, मुझको न भूलाना तुम,
हां, यह तय था, तेरा याद रहना जरूरी था।
तुमको बेवफा न कह दें मेरे जानने वाले कहीं,
इश्क में हादसा कोई, दोस्तों को सुनाना जरूरी था।
वक्त की जमीं पर बिखेर दिये खत के पुर्जे,
तू मेरा था कभी, यह सबसे छिपाना जरूरी था।
- रविकुमार बाबुल
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
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