इस मोहब्बत का नतीजा ब खुदा कुछ भी नहीँ
ऐसी बीमारी है यह जिसकी दवा कुछ भी नहीँ
खो गयीँ तस्वीरेँ तेरी खो गये तेरे खुतूत
ज़हन मेँ अब तेरी यादोँ के सिवा कुछ भी नहीँ
कब मोहब्बत की ज़बां अल्फ़ाज की मोहताज है
मैँने सब कुछ सुन लिया उसने कहा कुछ भी नहीँ
हमने तुझ को हसरतेँ दीँ,चाहतेँ दीँ,जान दी
ज़िन्दगी हम को मगर तुझ से मिला कुछ भी नहीँ
बाल क्योँ बिखरेँ हुए हैँ,क्योँ यह आंखे लाल हैँ
मैँने पूछा क्या हुआ कहने लगा कुछ भी नहीँ
जिन चराग़ोँ की हिफ़ाज़त कर रहे होँ हौसले
उन चराग़ोँ के मुक़ाबिल यह हवा कुछ भी नहीँ
शर्त तो यह है कि पढने वाली आँख हो
कौन कहता है कि चेहरे पर लिखा कुछ भी नहीँ
लिया गया है:
http://premkibhasha.blogspot.com से।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
bhut khubsurat...
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteशर्त तो यह है कि पढने वाली आँख हो
ReplyDeleteकौन कहता है कि चेहरे पर लिखा कुछ भी नहीँ
Bahut sahi kaha aapne. bahut badhiya gazal...badhayi..
really, chehare par sab kuch likha hai
ReplyDeleteBeautiful as always.
ReplyDeleteIt is pleasure reading your poems.
"मुहब्बत के लिए कुछ खास दिल मखसूस होते हैं.
ReplyDeleteये वो नगमा है जो हर साज पर गाया नही जाता।"
2.हमारा साथ जो तुमने दिया न होता
कहां हैं हम हमें खुद पता न होता।
बहुत ही सुंदर।धन्यवाद।
मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।
व्यस्तता के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् और आशा करता हु आप मुझे इसी तरह प्रोत्सन करते रहेगे
दिनेश पारीक