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Thursday, April 21, 2011

मोहब्बत

इस मोहब्बत का नतीजा ब खुदा कुछ भी नहीँ

ऐसी बीमारी है यह जिसकी दवा कुछ भी नहीँ

खो गयीँ तस्वीरेँ तेरी खो गये तेरे खुतूत

ज़हन मेँ अब तेरी यादोँ के सिवा कुछ भी नहीँ

कब मोहब्बत की ज़बां अल्फ़ाज की मोहताज है

मैँने सब कुछ सुन लिया उसने कहा कुछ भी नहीँ

हमने तुझ को हसरतेँ दीँ,चाहतेँ दीँ,जान दी

ज़िन्दगी हम को मगर तुझ से मिला कुछ भी नहीँ

बाल क्योँ बिखरेँ हुए हैँ,क्योँ यह आंखे लाल हैँ

मैँने पूछा क्या हुआ कहने लगा कुछ भी नहीँ

जिन चराग़ोँ की हिफ़ाज़त कर रहे होँ हौसले

उन चराग़ोँ के मुक़ाबिल यह हवा कुछ भी नहीँ

शर्त तो यह है कि पढने वाली आँख हो

कौन कहता है कि चेहरे पर लिखा कुछ भी नहीँ

लिया गया है:
http://premkibhasha.blogspot.com से।

7 comments:

  1. शर्त तो यह है कि पढने वाली आँख हो

    कौन कहता है कि चेहरे पर लिखा कुछ भी नहीँ
    Bahut sahi kaha aapne. bahut badhiya gazal...badhayi..

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  2. Beautiful as always.
    It is pleasure reading your poems.

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  3. "मुहब्बत के लिए कुछ खास दिल मखसूस होते हैं.
    ये वो नगमा है जो हर साज पर गाया नही जाता।"

    2.हमारा साथ जो तुमने दिया न होता
    कहां हैं हम हमें खुद पता न होता।
    बहुत ही सुंदर।धन्यवाद।
    मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  4. व्यस्तता के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.

    आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् और आशा करता हु आप मुझे इसी तरह प्रोत्सन करते रहेगे
    दिनेश पारीक

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