रौशन जहाँ की ही ख्वाहिश की है
मैंने अपने दिल की झूठे बाज़ार में
सच्चाई के साथ आजमाइश की है |
मालूम है बस फरेब है यहाँ तो
फिर क्यों मैंने सपन भर आँखों में
अपने उसूलों की नुमाइश की है |
जब मेरी जिन्दगी मेरी नहीं तो क्यों?
ख्वाब ले जीने की गुंजाइश की है |
कुछ जज्बात हैं मेरे इस दिल के
उनको समझ खुदा से मैंने बस
कुछ खुशियों की फरमाइश की है |
मैनें तो बस कुछ लम्हों के लिए
रोशन जहाँ की ख्वाहिश की है |
- दीप्ति शर्मा
aa udasi oodkar so jaye ham...
ReplyDeletekhwasiyo ki kaas! koi had mile....
सुंदर जज्बात से भरी कविता बधाई.......दीप्ति जी
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आदरणीय दीप्ति शर्मा जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
मैंने तो बस कुछ लम्हों के लिए
रोशन जहाँ की ख्वाहिश की है ?
बहुत खूब,
जी... लम्हों का कतरा-कतरा ही जब सैलाब बन चलता है, तो दिल के समन्दर में ख्वाहिशें तब राह बना आगे बढ़ चलती हैं तो जलदीप भी नजर आने लगता है और रौशन होता बहुत कुछ? फरेब की बेहतर नक्काशी आपकी रचनाओं में ।
रविकुमार बाबुल
कुछ जज्बात हैं मेरे इस दिल के
ReplyDeleteउनको समझ खुदा से मैंने बस
कुछ खुशियों की फरमाइश की है |
मैनें तो बस कुछ लम्हों के लिए
रोशन जहाँ की ख्वाहिश की है |
बहुत खूब !
रौशन जहाँ की ही ख्वाहिश की है
ReplyDeleteमैंने अपने दिल की झूठे बाज़ार में
सच्चाई के साथ आजमाइश की है |
मालूम है बस फरेब है यहाँ तो
फिर क्यों मैंने सपन भर आँखों में
अपने उसूलों की नुमाइश की है |
क्या बात है दीप्ती जी, गजब कर दिया. मै यहाँ ब्यान नहीं कर सकता की कितने ही सुन्दर तरीके से आपने अपने दिल के भावो को शब्दों में पिरो कर कविता लिख दी. बहुत-बहुत बधाई. फर्क यह है की मै भी कुछ ऐसे ही भावो से गुफ्तगू करता हूँ. आपका भी मेरी गुफ्तगू में स्वागत है.
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