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Wednesday, August 28, 2013




कृष्ण तुम मेरे सारथी हो 

तुम रहते हो मेरी वार्डरोब में
काले रंग की उन साड़ियों में

जिन्हें खरीदा है मैंने
दिल्ली, मद्रास, हैदराबाद के बाज़ारों से
जब-तब लिपट जाते हो मेरे तन से
कृष्ण तुम मेरा आवरण हो

तुम बहते हो मेरे घर के नलकों में
जिनसे आता है यमुना का पानी
रोज़ कतरा कतरा पीती हूँ तुमको
कृष्ण तुम मेरा जीवन हो

तुम्हे बजते हो मेरे कानो में
जब जब सुनती हूँ एफ एम
कई गीतों ऐसे भी होते हैं
जिनमे एक सुर बासुरी का होता है
कृष्ण तुम मेरा मनोरंजन हो

कृष्ण तुम मेरी नोटबुक हो
तुम्हारे सिधान्तो के सहारे
मोटीवेशनल गुरु समझाते हैं अपनी बात
वो मानते हैं कि
तुम्हारी नीतियों के आगे शून्य है
कॉरपोरेट की पूरी दुनिया
तुमने कुरुक्षेत्र में जो कहा था
वो केवल अर्जुन के लिए नहीं था
इसीलिए तो आईआईएम और आइआइटी ने
किताबों में सहेज लिए हैं तुम्हारे मंत्र
कृष्ण तुम मेरा सेलेबस हो

कृष्ण तुम ट्राफिक की लाल हरी बत्ती हो
जीवन की आपाधापी में
जब विचारों का ट्राफिक जाम हो जाता है
जब मुश्किल हो जाती है अपनी राह पहचानना
तब याद आती है गीता
तब खुले हैं ज्ञान के द्वार
तब दिखता है रास्ता
कृष्ण तुम मेरे सारथी हो
================== अरशाना अज़मत 

Sunday, August 25, 2013



ये मेरी नाराजगी है भारतीय अर्थवय्वस्था व सैन्य वयवस्था को लेकर व तमाम देश के व समाज के ठेकेदारों के प्रति .

मनी'थक गया है झुक गया है कोई लूट रहा है
किसी ने सच कहा है हिंदुस्तान अब टूट रहा है

वतन पे मिटने वालो का जो वतन पे पहरा है
मनी'देख रहा हु साथ उनका भी अब छूट रहा है

गाली है तू कैसे कहू तुझको मै नेता वतन का
मनी'लूट कर मेरा वतन तू कहा अब फूट रहा है
=================मनीष शुक्ल

Wednesday, August 21, 2013

मै खुद में खुदा को ढूंढता हूँ

खुद से जीतने की जिद है, मुझे खुद को ही हराना है 
मै भीड़ नहीं हूँ दुनिया की, मेरे अन्दर एक ज़माना है 

मै खुद में खुदा को ढूंढता हूँ 
डूबता हूँ, डूबता हूँ, डूबता हूँ 
अजीब हाल है इस दुनियादारी का 
ये सारे हाल तेरे हाल पर ही छोड़ता हूँ 

डूबता हूँ, डूबता हूँ, डूबता हूँ 
मै खुद में खुदा को ढूंढता हूँ 
डूबता हूँ, डूबता हूँ, डूबता हूँ 

टूटने दो टूटने के बाद ही तो कुछ बनेगा 
छूटने दो छूटने के बाद ही तो वो मिलेगा 
एक परिंदा है अभी जिंदा मुझमें कहीं थोडा बहुत 
उड़ने दो उड़ने के बाद ही तो वो कहेगा 

मै मलंग, बनके पतंग 
अपने फलक को चूमता हूँ 

डूबता हूँ, डूबता हूँ, डूबता हूँ 
मै खुद में खुदा को ढूंढता हूँ 
डूबता हूँ, डूबता हूँ, डूबता हूँ 
मै खुद में खुदा को ढूंढता हूँ 

अजीब हाल है इस दुनियादारी का 
ये सारे हाल तेरे हाल पर ही छोड़ता हूँ 


चाहता हूँ  मै भी उड़ना और तैरना 
चाहता हूँ  मै भी नाचूँ बनके झरना 
तोड़ दूं जंजीर जिनसे मै बंधा हूँ 
चाहता हूँ लिख दूं हवा पे नाम अपना 

चाहता हूँ इस कदर,
इसी चाह में मै झूमता हूँ 

डूबता हूँ, डूबता हूँ, डूबता हूँ 
मै खुद में खुदा को ढूंढता हूँ 
डूबता हूँ, डूबता हूँ, डूबता हूँ 
मै खुद में खुदा को ढूंढता हूँ 

अजीब हाल है इस दुनियादारी का 
ये सारे हाल तेरे हाल पर ही छोड़ता हूँ 

Friday, August 9, 2013

"शब्द सवेरे के, अब तक ताज़े हैं "

साँझ के 
झुटपुटे की पंक्तियों में, 
शब्द सवेरे के,

अब तक ताज़े हैं 
चलो, गुलदस्ता बना लेते हैं एक और,
जिंदगी के लिए; 

किसी 
झिडकन के साथ, 
बरसी है
बारिश ये अभी,
कुछ बूंदे हथेली पर, 
कुछ माथे पर हैं, 
अथक श्रम कर रही है जिंदगी ये 
जिंदगी के लिए; 

जो है 
लुटाने को उसे है  तत्पर,
ये मुट्ठी खुल रही है 
पालने  से पैरों  तक का 
सफ़र तय किया है,
अब कितनी अकलमंदी से 
गवां रहे हैं जिंदगी को, 
जिंदगी के लिए

थोड़ी इसे भी राहतें  बख्शें, 
थोड़ी सी धडकनें 
इसकी भी रह सकें साबुत,, 
सिफ़र  कर दें कभी तो चाहतों को 
शेष रख लें कभी तो थोडा समय 
बेनज़र  सी गुजर जाती हुई इस 
जिंदगी के  लिए;

एक चिड़िया 
सुबह जो चहकी थी, 
अभी भी शाख पर दिल की,
वक़्त की दालान में बैठी है 
एक हाथ का ही फासला ये 
चाहें तो फिर से एक बार 
थोड़ी सी गुनगुनाहट लें सहेज,
थोड़ी से चहचहाहट  
जिंदगी के लिए.