ध्रुव गुप्ता जी की गजल उन्ही की किताब ''मौसम के बहाने से
कुछ दहशत हर बार ख़रीदा
जब हमने अख़बार ख़रीदा
हमने क्या सरकार ख़रीदा
कतरा कतरा लहू बेचकर
एक दुनिया बीमार ख़रीदा
सच पे सौ सौ परदे डाले
फिर सपने दो चार ख़रीदा
ख्वाब दुआ उम्मीद इबादत
जीने के औजार ख़रीदा
उसके भीतर भी जंगल था
कल जिसने घरबार ख़रीदा
एक मुश्त में दिल दे आया
टुकड़ा टुकड़ा प्यार ख़रीदा
हम बेमोल लुटा देते है
तुमने जो हर बार ख़रीदा
एक भोली मुस्कान की ख़ातिर
कितना कुछ बेकार ख़रीदा
प्यार से भी हम मर जाते है
आपने क्यों हथियार ख़रीदा
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