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Saturday, January 15, 2011

आज मैखाने की तरफ होके आते है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

आज मैखाने की तरफ होके आते है
एक पैमाना और एक जाम लगाते है

गम और ख़ुशी का एक माजरा बनाते है
आज मैखाने में खूब झूम के गाते है

चाहत को हकीकत से रु बरु करते है
आज मैखाने को दिल से सजाते है

खूब पीते है और खूब पिलाते है
आज मैखाने से लडखडा के जाते है

परवाह न खुद की न रह्गुजारी की
आज मैखाने में खुद ही बिक जाते है

........मनीष शुक्ल

3 comments:

  1. वाह भई मनीष जी!

    बहुत ही मखमली गजल लिखी है आपने!

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  2. इतनी सुन्दर गज़ल पढ़ कर खुमार तो आएगा ही..

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  3. शुक्रिया संजय जी ,,,,,,,,
    बस संजय जी एक पार्टी के दौरान लिखी थी ,,,,,,,,,,

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