अगर आप भी इस मंच पर कवितायेँ प्रस्तुत करना चाहते हैं तो इस पते पर संपर्क करें... edit.kavitabazi@gmail.com

Thursday, October 13, 2011

पलकों की पीर



-- Image from google with thanks.
पलकों में बसी है पीर बहुत,
बरखा के आने की बारी है।
वो मुझमें रहती दूर बहुत,
ज्यों बादल पानी की यारी है।

2 comments:

  1. aapka dhanyawad sanjay ji aur aapki rachanaye utkrist hai ..bhavnao se oot prot ..aur vastavikata se rangi hui aapko bahut shubhkamnaye aur aapka bhi swagat hai hamesa

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

    ReplyDelete