इसीलिए तो आईने से आनाकानी है
परछाईं भी घटती बढती है पल पल
खुद के दम पर नैया पार लगानी है
अंधियारे की रात भयानक आई है
जुगुनुओं की बरात हमें अब लानी है
संविधान के खातिर खाकी खादी ने
जो खायी थी कसमें याद दिलानी हैं
टूटो-छूटो फिर से संवरो और डट जाओ
संघर्ष का दूजा नाम ही तो जवानी है
www.neerajkavi.blogspot.com
वाह गजब
ReplyDeletedhnywaad sanjay ji :)
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