अगर आप भी इस मंच पर कवितायेँ प्रस्तुत करना चाहते हैं तो इस पते पर संपर्क करें... edit.kavitabazi@gmail.com

Tuesday, March 29, 2011

जिन्दगी


उलझनों में जीती हुए मैं,
जिन्दगी को तलाश रही हूँ|
जगती हुई उन तमाम
अडचनों के साथ मैं खुश
रह जिन्दगी निखार रही हूँ |

बेवजह की उस उदासी का
जिक्र चला यादो की चादर से
खुद को पहचान रही हूँ|

गम भुला के दिल की उन
उम्मीदों को दिल मे बसा
तेरी यादों को ठुकरा रही हूँ |

जीने की चाह मे आह को भूला
चेहरे के तासुर  में गम छिपा
जिन्दगी को तलाश रही हूँ |

- दीप्ति शर्मा 

3 comments:

  1. उलझनों में जीती हुए मैं,
    जिन्दगी को तलाश रही हूँ !
    .....कैसी उलझन हो गई दीप्ति जी

    ReplyDelete
  2. काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर

    ReplyDelete
  3. उलझनों में जीती हुए मैं,
    जिन्दगी को तलाश रही हूँ|... such me ham zindgi hi talash kar rahe hai... very nice

    ReplyDelete