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Saturday, February 26, 2011

इस कदर गुमसुम...


कभी- कभी 
कुछ भी न लिखना  भी 
अच्छा होता है ;
जरूरी तो नहीं 
कि
सब कुछ जो 
हम कहना चाहे , कहे ही ;
या फिर जो हम कहते है 
वो कोई 
समझे ही. 
दोस्तों!
अधिकतर तो हम कहते रहते है -
लोग सुनते रहते है
फिर एक दिन 
पता चलता है
किसी ने कुछ भी तो 
नहीं सुना था ;
सुना होता तो आज 
यू क्या अकेले होते हम, 
इस भीड़ में यू तन्हा
इस कदर  गुमसुम.

8 comments:

  1. किसी ने कुछ भी तो
    नहीं सुना था ;
    सुना होता तो आज
    यू क्या अकेले होते हम,
    इस भीड़ में यू तन्हा

    बहुत बढ़िया

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  2. जब हम कुछ कहते हैं तो लगता है कि क्यों कहा और जब नहीं कहते तो लगता है क्यों नहीं कहा. इसलिए मेरा मन्ना है किसी के सुनने ना सुनने की परवाह ना करके हमें कहते रहना चाहिए. कहते हैं ना, कोई है जो सब सुन रहा है. वैसे अपने बहुत दिन बाद कविताबाज़ी पर कुछ कहा, ये अच्छा लगा...!

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  3. किसी ने कुछ भी तो
    नहीं सुना था ;
    सुना होता तो आज
    यू क्या अकेले होते हम,
    इस भीड़ में यू तन्हा
    इस कदर गुमसुम.

    आज बहुत दिनों बाद आप आये
    सच में अच्छा लगा
    काफी अच्छी कविता है ,,,आपकी ,

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  4. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...

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  5. लोग सुनते रहते है
    फिर एक दिन
    पता चलता है
    किसी ने कुछ भी तो
    नहीं सुना था ; well said.

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  6. कभी- कभी
    कुछ भी न लिखना भी
    अच्छा होता है ;
    जरूरी तो नहीं
    कि
    सब कुछ जो
    हम कहना चाहे , कहे ही ;

    bahut achhi lines

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