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Tuesday, February 8, 2011

जावेद साहब की कुछ पंक्तियाँ


           क्यों ना हम कविताबाज़ी को सिर्फ कविता लिखने और कमेन्ट करने से कुछ आगे ले जायें और यहाँ हिंदी कविता पर चर्चाएं भी शुरू करें, जो कि कुछ बड़े कवियों पर हों या उनकी रचनाओ पर. कुल मिलाकर कविताबाज़ी सिर्फ हमारी कविताओं तक ही सीमित ना रहे. हम समस्त काव्य संसार पर चर्चाएं करें, अपनी राय रखें और अपने प्रिय कवि और अपनी प्रिय रचनाओं को भी यहाँ पर साझा करें. इसी कड़ी में आज जावेद अख्तर की कुछ पंक्तियाँ यहाँ पेश हैं... इन पंक्तियों पर और जावेद साहब पर आपके विचार आमंत्रित हैं....

अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना

मैंने पलकों पे तमन्‍नाएँ सजा रखी हैं
दिल में उम्‍मीद की सौ शम्‍मे जला रखी हैं
ये हसीं शम्‍मे बुझाने के लिए मत आना

प्‍यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं
चाहने वालों की तक़दीरें बदल सकती हैं
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना

अब तुम आना जो तुम्‍हें मुझसे मुहब्‍बत है कोई
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
तुम कोई रस्‍म निभाने के लिए मत आना

6 comments:

  1. एक अच्छी शुरुआत के अत्यंत आभार. पर इसमें भाषा, काल या युग का factor क्या रहेगा ? मेरा अभिप्राय सभी भारतीय भाषाओँ के कवि व कविता से है. कृपया थोड़ा विस्तार में प्रकाश डालिए.

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  2. अच्छी शुरुआत
    कविता पर चर्चाएं........ आभार

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  3. bahut achchha blog or achchhi shuruaat v maf kijiyega main kavita par vichar nahi rakh raha hun. darasal mai bas padh leta hun. itna gahra samjhta nahi. par kosish karuga dhire dhire

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  4. bahuta accha...........



    एक निवेदन-
    मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है

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  5. @सुबीर रावत
    कोई शर्त नहीं है सुबीर जी, बस कविता हिंदी में होनी चाहिए और यदि किसी और भाषा के कवि की बात करना चाहें तो भी स्वागत है, बस चर्चा हिंदी में हो...बाकी हम काव्य जगत के इतिहास और वर्तमान से ढेरों कवियों को उठाकर चर्चाएं कर सकते हैं.. ये एक नया प्रयास होगा और निश्चित रूप से अर्थपूर्ण भी...!कोई शर्त नहीं है सुबीर जी, बस कविता हिंदी में होनी चाहिए और यदि किसी और भाषा के कवि की बात करना चाहें तो भी स्वागत है, बस चर्चा हिंदी में हो...बाकी हम काव्य जगत के इतिहास और वर्तमान से ढेरों कवियों को उठाकर चर्चाएं कर सकते हैं.. ये एक नया प्रयास होगा और निश्चित रूप से अर्थपूर्ण भी...!

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  6. आप सबसे आग्रह है कि अपनी प्रिय कवितायेँ और कवि यहाँ पर शेयर करें...!

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