तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी
माँ रोई और बहना रोई, रोई खुदाई थी
तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी
माँ बोली मेरा एक लाल था जिसने प्राण गवाएं
इश्वर ने क्यों मुझको ना सौ सौ लाल जनाए
देश सुरक्षा के खातिर सबको सरहद भिजवाती
सौ शहीदों वालों माँ मै बड़े गर्व से कहाती
फफक- फफक कर रोई माँ, रो रो बौराई थी
तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी
माँ रोई और बहना रोई, रोई खुदाई थी
तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी
बहना बोली भाई ने मेरे मेरा मान बढाया
रक्षा बंधन के सूत्र वाक्य को जीवन में अपनाया
मेरा भाई वीर था उसने वीरगति को पाया
देश सुरक्षा के खातिर-
हाँ देश सुरक्षा के खातिर अपनी जान गंवाई
ये कहते ही उसने भी सुध-बुध गंवाई थी
तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी
माँ रोई और बहना रोई, रोई खुदाई थी
तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी
शहीद हो गया लाल ये मेरे बुढ़ापे का सहारा
कर रहा गर्व मेरे लाल पे पूरा देश हमारा
सेना में भर्ती होने का सपना मैंने दिखलाया
देश सुरक्षा सर्वोपरि है पाठ ये मैंने पढ़ाया
हम सबकी रक्षा के खातिर सबकुछ उसने लुटाया
इतना कहते ही उसकी फिर आँखें भर आयीं थीं
तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी
माँ रोई और बहना रोई, रोई खुदाई थी
तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी
Wednesday, May 28, 2014
तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी
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बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
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