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Friday, October 3, 2014

विजय दशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ :(


कविताबाज़ी ब्लॉग की ओर से आप सभी ब्लोगर मित्रों को विजय दशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ .....!!

 -- संजय भास्कर


Wednesday, May 28, 2014

तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी

तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी 
माँ रोई और बहना रोई, रोई खुदाई थी 
तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी  

माँ बोली मेरा एक लाल था जिसने प्राण गवाएं 
इश्वर ने क्यों मुझको ना सौ सौ लाल जनाए 
देश सुरक्षा के खातिर सबको सरहद भिजवाती 
सौ शहीदों वालों माँ मै बड़े गर्व से कहाती 
फफक- फफक कर रोई माँ, रो रो बौराई थी 

तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी 
माँ रोई और बहना रोई, रोई खुदाई थी 
तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी  


बहना बोली भाई ने मेरे मेरा मान बढाया 
रक्षा बंधन के सूत्र वाक्य को जीवन में अपनाया 
मेरा भाई वीर था उसने वीरगति को पाया 
देश सुरक्षा के खातिर- 
हाँ देश सुरक्षा के खातिर अपनी जान गंवाई 
ये कहते ही उसने भी सुध-बुध गंवाई थी 



तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी 
माँ रोई और बहना रोई, रोई खुदाई थी 
तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी  

शहीद हो गया लाल ये मेरे बुढ़ापे का सहारा 
कर रहा गर्व मेरे लाल पे पूरा देश हमारा 
सेना में भर्ती होने का सपना मैंने दिखलाया 
देश सुरक्षा सर्वोपरि है पाठ ये मैंने पढ़ाया 
हम सबकी रक्षा के खातिर सबकुछ उसने लुटाया 
इतना कहते ही उसकी फिर आँखें भर आयीं थीं 

तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी 
माँ रोई और बहना रोई, रोई खुदाई थी 
तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी



Thursday, April 17, 2014

........... ना खुदाने सताया -- क्षमा जी :)


ना खुदाने सताया
ना मौतने रुलाया
रुलाया तो ज़िन्दगीने
मारा भी उसीने
ना शिकवा खुदासे
ना गिला मौतसे
थोडासा रहम  माँगा
तो वो जिन्दगीसे
वही ज़िद करती है,
जीनेपे अमादाभी
वही करती है...
मौत तो राहत है,
वो पलके चूमके
गहरी  नींद सुलाती है
ये तो ज़िंदगी है,
जो नींदे चुराती है
पर शिकायतसे भी
डरती हूँ उसकी,
गर कहीँ सुनले,
पलटके एक ऐसा
तमाचा जड़ दे
ना जीनेके काबिल रखे
ना मरनेकी इजाज़त दे......!!


लेखक -- क्षमा जी


Wednesday, February 26, 2014

महा शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें।


कविताबाजी ब्लॉग की और शिवरात्रि के पावन अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनायें

-- संजय भास्कर 


Tuesday, February 18, 2014

.......आरक्षण मदभेद है -- समीर महाजन

आरक्षण मदभेद है ,
और भारत माँ को भी खेद है  ,
बट गए हम अपनो मे,
और जातियो  से प्रतिछेद है ,
वाह रे वाह सरकार इस देश की,
तु इंसान के वेश मे प्रेत है ,
कभी ये देश सोने की चिड़िया  था
अब तो बस
रेत है ,
और भारत माँ को भी  खेद है,
आतंक मचाया सरकार ने खुद और रुपये से भी  उसकी कुर्सी-मेज है ,
रोको दुनिया वालो और फैलादो  संदेश मेरा ,
नहीं तो आगे हमारी जिंदगी निषेद है ,
और भारत माँ को भी  खेद है !!!

"मित्रो इस संदेश को दूर-दूर तक फैलाये "

लेखक - समीर महाजन