आपसे बे पनाह चाहत है मुझे
सिर्फ हस दो इतने से राहत है मुझे
यहाँ फंतासी कुछ भी नहीं दोस्त
बस आपकी ही आदत है मुझे
आपके दिल में भी कही हु मै
ये सोचके बड़ी हैरत है मुझे
सारे सहर में चर्चा है मेरा अब
ये आपकी ही सोहरत है मुझे
आपको चाह के गुनाह नहीं किया मैंने
"मनी"बता दो पाक मोह्हब्ब्त है मुझे
......................मनीष शु क्ल
badhiya likha manish bhai..!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
ReplyDeleteसंजय जी ,असीम जी का ,,,,,,,,,,,,,,,,आभार
ReplyDeleteमुहब्ब्त के लिए कुछ खास दिल मखसूसू होते हैं,
ReplyDeleteयह वो नगमा है,जो हर साज पर गाया नही जाता।।
सारगर्भित उदगार।
आभार,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, सरोवर जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteyour most welcome dr,,,,,,,,,
ReplyDeleteअत्यंत प्रभावी रचना
ReplyDeletei m great ful to u ,,,sumant
ReplyDeleteकाफी हट के लिखा है इसबार मनीष भाई
ReplyDelete....... अच्छा लगा
आलोक जी एक मात्र प्रयास ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,आभार
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