क्यों सबसे नजरे चुरा रहे है आप
क्यों खुद से दूर जा रहे है आप
बड़ी बेचैन सी है ये नजरे आज
इनसे किसको देखे जा रहे है आप
कभी इश्क को आवारगी कहा करते थे
क्यों खुद ही भूले जा रहे है आप
सिला दुआ करम ये किताबो में ही अच्छे है
क्यों इनमे फसते जा रहे है आप
'मनी'सलाह मानिये लौट जाइये ये मोहब्बत है
ख़ाम खा किस्मत अजमा रहे है आप
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ..मनीष शुक्ल
अच्छी ग़ज़ल है मनीष भाई...!
ReplyDeleteवाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
ReplyDeleteअसीम जी ,संजय जी ,,,,,,,,,,,,,आप सभी का आभार
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