गम और ख़ुशी का एक माजरा बनाते है
आज मैखाने में खूब झूम के गाते है
चाहत को हकीकत से रु बरु करते है
आज मैखाने को दिल से सजाते है
खूब पीते है और खूब पिलाते है
आज मैखाने से लडखडा के जाते है
परवाह न खुद की न रह्गुजारी की
आज मैखाने में खुद ही बिक जाते है
........मनीष शुक्ल
वाह भई मनीष जी!
ReplyDeleteबहुत ही मखमली गजल लिखी है आपने!
इतनी सुन्दर गज़ल पढ़ कर खुमार तो आएगा ही..
ReplyDeleteशुक्रिया संजय जी ,,,,,,,,
ReplyDeleteबस संजय जी एक पार्टी के दौरान लिखी थी ,,,,,,,,,,