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Wednesday, January 19, 2011

बारिश ने लिखी कविता


बारिश ने लिखी कविता  
किसी खिड़की के शीशे पर 
मगर अल्फाज़ पढ़ने का 
यहाँ पर वक़्त किसके पास है 

मौसम ने सजाया है 
बड़ी मेहनत से अम्बर को 
मगर छत पर टहलने का 
यहाँ पर वक़्त किसके पास है 

बाँहों में थाम लो भले
ये बात और है
मगर दिल में उतरने का 
यहाँ पर वक़्त किसके पास है

समझ सकते हैं हम
दुनिया के सारे कायदे कानून
मगर खुद को समझने का
यहाँ पर वक़्त किसके पास है.

10 comments:

  1. ऐसी कवितायेँ ही मन में उतरती हैं ॥

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  2. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ बेहतरीन रचना! बहुत बढ़िया लगा

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  3. बाँहों में थाम लो भले
    ये बात और है
    मगर दिल में उतरने का
    यहाँ पर वक़्त किसके पास है

    वाकई शानदार प्रस्तुति ,,,,,,,,,,,असीम जी

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  4. मगर खुद को समझने का
    यहाँ पर वक़्त किसके पास है.
    padhkar bahut achcha laga.sahi aur sunder bhaw likhe hain.

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  5. संजय भाई, मनीष भाई और मृदुला जी आप सबको धन्यवाद... :)

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  6. मौसम ने सजाया है
    बड़ी मेहनत से अम्बर को
    मगर छत पर टहलने का
    यहाँ पर वक़्त किसके पास है
    .....................smthing is likely to pinch....khoobsurat lines with sour reality.... !! :)

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  7. " मगर ख़ुद को समझने का
    यहाँ पर वक़्त किसके पास है "
    बहुत खूब लिखा है !
    ईश्वर नज़रे बद से बचाए!

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  8. शुक्रिया निवेदिता जी, इतनी भी तारीफ मत कीजिये :) वैसे ये पंक्तियाँ मुझे भी बहुत पसंद हैं...!

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  9. Bahut hi Sundar Rachna. Padhkar Achcha Laga.

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