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Monday, October 31, 2011

वक्त

बुरी आदत है,
अच्छे वक्त की,
वो जाने की जल्दी करता है?

अच्छी आदत है,
बुरे वक्त की,
वो बहुत कम ठहरता है करीब?

  • रविकुमार बाबुल

Thursday, October 20, 2011

खुद को बढाने का कहा वक़्त इनके पास , रहते है खडहर में बुरा खडहर का सोचते है



अजीब लोगो की बाते है अजीब सोचते है 
खुद का पता नहीं बाते गैरो की सोचते है 

खुद को बढाने का कहा वक़्त इनके पास 
रहते है खडहर में बुरा खडहरका सोचते है

यू तो नहीं कुछ भी अब रहा पास इनके 
 पास बैठो तो ये बनने मंत्री की सोचते है 

बातो को खूब बढाना घटाना आता है इनको 
अफ़सोस तो है बस ये बाते बुराई की सोचते है

मनी' अजीब लोगो की बाते है अजीब सोचते है
दिल के करीब रहके ये  बाते दिल्लगी सोचते है 
             ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मनीष शुक्ल 









Friday, October 14, 2011

भ्रष्टाचार आन्दोलन के "साइड इफेक्ट"


         

बहुत सारी भीड़ है | वो देश सुधार और भ्रष्टाचार को मिटने का आन्दोलन कर रहे हैं , 
सारी सड़के जाम हैं ,
जनता बेहाल है ,
सर्कार का बुरा हाल है ,
ये समाधान है या 
कोई व्यवधान है जो 
यहाँ हर कोई परेशान है 

तभी एक एम्बुलेंस दूर से आती है , उस भीड़ में वो फंस  जाती है , मरीज की हालत गंभीर है पर कोई उसे निकलने नही दे रहा है क्यूँ की  वो समाज सेवी है और देश का सुधार कर रहें हैं |

नारें लगा रहें वो देखो 
लोगो का हुजूम बना 
और समाज चला रहे हैं 
वो जो तड़प रहा है अंदर 
देख उसे नजरे झुका रहे हैं 
न ही वो उनका सगा है 
न ही सम्बन्धी है फिर 
क्यों दिखावे में नहा रहें हैं 
तड़प रहा है वो इलाज को 
और देखो ये सब यहाँ 
भ्रष्टाचार मिटा रहे हैं |

बहुत सारी भीड़ इकट्ठी है , सरकार के खिलाफ कुछ हैं जो सच में साथ हैं और कुछ लोग दिमाग से वहा और मन से दफ्तर में हैं , जहाँ कोई आएगा घुस देके जायेगा , वो दलाल है सरकार के जिनके आँखों में हमेशा से ही पट्टी बंधी है |

सरकार के खिलाफ बन खड़ें हैं
हाथों में मशाल लिए अड़े हैं 
दिल से यहाँ पर दिमाग से वहां 
जहा घुस मिल जाएगी 
क्यों जिद कर वो 
दिखावे को पड़े हैं 
घुस खाकर पेट भरता है जिनका 
क्यों वो आम जनता के साथ 
हाथ में हाथ लिए वहा डटे हैं |

 -  दीप्ति शर्मा

Thursday, October 13, 2011

आईना...

आप से निवेदन है कि अब मेरे दोनों ब्लाग निचे जो लिंक है वह फेसबुक पर उपलब्ध है तो मेरा आपसे अनुरोध है कि कृपया फेसबुक पर भी अनुसरण करें !! धन्यवाद !! 
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पलकों की पीर



-- Image from google with thanks.
पलकों में बसी है पीर बहुत,
बरखा के आने की बारी है।
वो मुझमें रहती दूर बहुत,
ज्यों बादल पानी की यारी है।

एक आस


ये है एक अँधेरी रात,
थोड़े अनदेखे हालात।
एक दो दीप जले हैं,
थोड़ी होती है बरसात॥

कुछ खट्टी मीठी यादों के संग,
मैं चलता सारी रात।
बस एक आस के साथ,
कि शायद हो उनसे मुलाकात॥

दिन ढलतारातें आतीं हैं,
एक नयी सुबह के साथ।
सुख दुख संग संग रहते हैं,
जैसे बादल में बरसात॥

खूब भीड़ है शोर बहुत,
मैं सुनता सबके साज।
बस एक आस के साथ,
कहीं तो हो उनकी आवाज़॥

शायद हो उनसे मुलाकात

एक आस

Tuesday, October 11, 2011

अजब दास्ताँ होती है मोहब्बत की, हम कुछ समझे वो कुछ समझाते रहे


वो मुस्कुराते रहे गीत गाते रहे 
हम चुप चुप के आशू बहाते रहे 

वो समझे न एक इशारा भी यारो
  हम पल पल पलक झपकाते रहे 
 
उनका हर एक हुक्म सर आँखों पे था
पर अफ़सोस वो हुक्मरान ही बताते रहे 

अजब दास्ताँ होती है मोहब्बत की 
हम कुछ समझे वो कुछ समझाते रहे 
 
हम जब जब खुद को बचाते रहे 
मनी'वो तब तब दिल चुराते रहे 
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मनीष शुक्ला 

 








 




Monday, October 10, 2011

सभी कवि साथियों को नमस्कार,

 सर्वप्रथम मै मनीष शुक्ला अपने मित्र कवि असीम त्रिवेदी जी
  एवं सभी कवियों का धन्यवाद अदा करना चाहूँगा 
की आज उन्होंने मुझे कविताबाजी
 के संपादक एवं संचालन
 के योग्य समझा
  और मै 
कविताबाजी को आगे बढ़ाने के लिए वचनबद्ध हु 
और किसी भी तरह के सुझाव के लिए आप हमसे 
संपर्क  कर सकते है 

मनीष शुक्ला 
manish.shukla.pirmal008@gmail.com
09650449895,09990442478



Sunday, October 9, 2011

कविताबाजी के सम्बन्ध में आवश्यक सूचना


सभी कवि साथियों को नमस्कार,

जब मैंने जनवरी, 2011 को यह ब्लॉग बनाया था तो उम्मीद नहीं थी की यह ब्लॉग इतनी ज़ल्दी ब्लॉग जगत में अपना स्थान बना लेगा. इस सबके लिए मै कविताबाजी से जुड़े सभी कवियों का तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूँगा की उन्होंने कविता के प्रति अपने प्रेम से कविताबाजी को कविता की दुनिया में उचित स्थान बनाने में बहुमूल्य योगदान दिया और आपसे क्षमा भी चाहूँगा की पिछले कुछ समय से अपनी आनलाइन मैगजीन दखलंदाज़ी (http://www.dakhalandazi.com/)  को लेकर काफी व्यस्त होने के कारण कविताबाजी को उचित समय नहीं दे पा रहा हूँ और इसकी वज़ह से हमारे इस साहित्यिक ब्लॉग को नुक्सान उठाना पड़ रहा है. कुछ कवियों की रिक्वेस्ट भी कई कई दिन तक पेंडिंग रह जाती है, जिससे उन्हें भी निराशा होती है. अतः मैंने कविताबाजी की ज़िम्मेदारी अपने मित्र कवि मनीष शुक्ला को सौपने का निर्णय लिया है. उनके कविता और साहित्य के प्रति समर्पण को देखकर मुझे विश्वास है की मनीष भाई कविताबाजी को आगे ले जाने में बखूबी अपनी भूमिका निभाएंगे. दिल्ली निवासी मनीष जी शुरू से ही कविताबाजी से जुड़े रहे हैं और यहाँ तक की कविताबाजी पर पहली कविता भी मनीष जी ने ही पोस्ट की थी. 

अतः आप सबको सहर्ष सूचित करना चाहूँगा की अब मेरे स्थान पर मनीष जी ही कविताबाजी के संपादक और संचालक की भूमिका निभाएंगे. आशा है की आप सब भी मेरे इस निर्णय से संतुष्ट होंगे. और कविताबाजी के संचालन में मनीष जी को सहयोग प्रदान करेंगे. 

आपका,
असीम त्रिवेदी
aseem@dakhalandazi.com
09336505530, 08898189190

Thursday, October 6, 2011

एक दीप अँधेरे में ...


एक दीप अँधेरे में ...
बरसों से मंदिर के कपाट में 
एक दीप अँधेरे में जल रहा है 
रोशनी की तलाश में भटककर खुद से लड़ रहा है 
कितने दिन बीत गए ...
अपने रूप को , आईने में नही देख पाया 
थोड़ा सा तेल 
वहीं पुरानी बाती 
उसी कपाट पर 
बंद , पडा अपनी दशा से परेशान
फिर भी धीमें -धीमें  जल रहा है 
उस उजले दिन की इंतजार में 
बुझता और जलता 
नया सबेरा ढूंढ़ रहा है 
बरसों से मंदिर की कपाट में 
एक दीप अँधेरे में जल रहा है 

 लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल " 

Wednesday, October 5, 2011

हार्दिक शुभकामनाएं


दुआ...


आप सभी को दुर्गा नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं 
और साथ ही साथ बुराई पर अच्छाई की जीत की प्रतिक दशहरा पर्व की भी बधाईयां....
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नीलकमल वैष्णव"अनीश" 

Saturday, October 1, 2011

हिंदी कविता प्रतियोगिता


Catch my post द्वारा आयोजित हिंदी कविता प्रतियोगिता में मैंने अपनी दो रचनायें भेजी है. कृपया लिंक पर जाकर उन्हें पढ़े और अगर पसंद आये तो LIKE button  पर क्लिक करना न भूलेंआपकी आलोचना भी वहीँ अपेक्षित है. आप अपने सभी मित्रो को भी ये लिंक भेज सकते हैं.
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बहुत आभार आपका मित्रों.