उलझनों में जीती हुए मैं,
जिन्दगी को तलाश रही हूँ|
जगती हुई उन तमाम
अडचनों के साथ मैं खुश
रह जिन्दगी निखार रही हूँ |
बेवजह की उस उदासी का
जिक्र चला यादो की चादर से
खुद को पहचान रही हूँ|
गम भुला के दिल की उन
उम्मीदों को दिल मे बसा
तेरी यादों को ठुकरा रही हूँ |
जीने की चाह मे आह को भूला
चेहरे के तासुर में गम छिपा
जिन्दगी को तलाश रही हूँ |
- दीप्ति शर्मा
उलझनों में जीती हुए मैं,
ReplyDeleteजिन्दगी को तलाश रही हूँ !
.....कैसी उलझन हो गई दीप्ति जी
काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर
ReplyDeleteउलझनों में जीती हुए मैं,
ReplyDeleteजिन्दगी को तलाश रही हूँ|... such me ham zindgi hi talash kar rahe hai... very nice