उदासी का गम ढ़ोते देखा
देखा सब को तड़पते हुए,
सारी रात मैंने पूरे आसमा को तड़पते देखा,
रात की रौशनी को देखा ,
तारो की चमक को देखा
सुबह होते ही इनकी रौशनी को खोते देखा |
थके से आसमा को देखा ,
अन्दर से रोते
अन्दर से चमक दमक खोते देखा
कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर
बस सबको रात भर
हमने बेफिक्र सोते हुए देखा |
-- संजय कुमार भास्कर
देखा सब को तड़पते हुए,
ReplyDeleteसारी रात मैंने पूरे आसमा को तड़पते देखा...bbhut hi sunder rachna hai...
बहुत खूबसूरत कविता
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएं
bahut shaandaar panktiya hai ye ,,,sanjay ji ........
ReplyDeletehappy holi
प्रिय संजू ,
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आना हुआ .... अच्छी पन्तियाँ पढके अच्छा लगा .
सुभकामनाओ सहित
मंजुला
आशमान को तड़पते देखा, तारों को रोते देखा ............ प्रकृति का मानवीकरण. खूबसूरत प्रस्तुति संजय जी ..... आभार.
ReplyDeleteब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteहोली के शुभ अवसर पर आपकी ये प्रेरक कविता अच्छी लगी,
ReplyDeleteसार्थक संदेश देती हुई कविता के लिए एवं होली की शुभकामनाये......
jai baba banaras...........
भास्कर भाऊ
ReplyDeleteआज होलियाना है भाई सो आज की
होली की हार्दिक शुभकामनायें
manish jaiswal
Bilaspur
chhattisgarh
खूबसूरत प्रस्तुति ,सार्थक कविता
ReplyDeleteअन्दर से रोते
ReplyDeleteअन्दर से चमक दमक खोते देखा
कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर
बस सबको रात भर
हमने बेफिक्र सोते हुए देखा |
bahut achhi rachna, gehre dard ka chitran kiye.
shubhkamnayen