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Friday, March 1, 2013

बस तुम हो और मैं हूँ


बहुत दिनों के बाद असीम ने लिखी कविता जो बेहद पसंद आई


बस तुम हो और मैं हूँ

किस्से हों बातें हों यादें हों

थोड़ी खुशबुएँ, थोड़ी खुशियाँ, थोड़े सपने, थोड़ी रोशनी हो

सब थोड़ा थोड़ा

थोड़ी कहानियाँ हों


छोटे छोटे चुटकुले हो जायें


थोड़ी सी 'देर सुबह' की धुप भी हो


सब कुछ शांत हो, एक दम ठहरा हुआ


फिर पत्तों से कुछ आवाजें आयें 


हमारे चलने की


तुम्हारी हंसी भी होनी चाहिए


हमारे आसपास सपने टंगे हों


एकदम ताज़े ताज़े


तुम हो जाओ और मैं हो जाऊं 


बस और क्या


चाय मंगा लेंगे दो कप.


----------------------असीम त्रिवेदी 

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