बहुत दिनों के बाद असीम ने लिखी कविता जो बेहद पसंद आई
बस तुम हो और मैं हूँ
किस्से हों बातें हों यादें हों
थोड़ी खुशबुएँ, थोड़ी खुशियाँ, थोड़े सपने, थोड़ी रोशनी हो
सब थोड़ा थोड़ा
थोड़ी कहानियाँ हों
छोटे छोटे चुटकुले हो जायें
थोड़ी सी 'देर सुबह' की धुप भी हो
सब कुछ शांत हो, एक दम ठहरा हुआ
फिर पत्तों से कुछ आवाजें आयें
हमारे चलने की
तुम्हारी हंसी भी होनी चाहिए
हमारे आसपास सपने टंगे हों
एकदम ताज़े ताज़े
तुम हो जाओ और मैं हो जाऊं
बस और क्या
चाय मंगा लेंगे दो कप.
बस तुम हो और मैं हूँ
किस्से हों बातें हों यादें हों
थोड़ी खुशबुएँ, थोड़ी खुशियाँ, थोड़े सपने, थोड़ी रोशनी हो
सब थोड़ा थोड़ा
थोड़ी कहानियाँ हों
छोटे छोटे चुटकुले हो जायें
थोड़ी सी 'देर सुबह' की धुप भी हो
सब कुछ शांत हो, एक दम ठहरा हुआ
फिर पत्तों से कुछ आवाजें आयें
हमारे चलने की
तुम्हारी हंसी भी होनी चाहिए
हमारे आसपास सपने टंगे हों
एकदम ताज़े ताज़े
तुम हो जाओ और मैं हो जाऊं
बस और क्या
चाय मंगा लेंगे दो कप.
----------------------असीम त्रिवेदी
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