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Friday, March 8, 2013

हर राज़ ले रहा है वो, मुझे ये यकीं दिलाकर, न तिलिस्म जानता है, न कोई जादू-टोना है


नये ख्वाब हैं गर तेरे पहलू में तो कह दे
आज की रात मुझे डर डर के नहीं सोना है

बिना जाने गर ये बाज़ी लगाईं है,तो लौट जा
इश्क के खेल में मुझे ईमान नहीं खोना है

बहुत गहरे हैं ज़ख्म माजी के, तू सुन ले
मेरी इक हद है, और वफादार नहीं होना है

हर राज़ ले रहा है वो, मुझे ये यकीं दिलाकर
न तिलिस्म जानता है, न कोई जादू-टोना है

===================मानसी

(कल की रात......)

1 comment:

  1. वाह क्या बात है आदरणीय-
    शुभकामनायें ||
    प्रस्तुत कर्ता के साथ साथ रचयिता को भी बधाई-

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