अपने हर अक्स का उन्स-ए-फ़ना हो जाऊँगा
उसको वफ़ा कहके, कैसे बेवफ़ा हो जाऊँगा
बाग़-बतियाँ, फूल-पतियाँ, दर्द-ज़र्द हो जायेंगे
सिर्फ कहने भर से, क्या तुमसे जुदा हो जाऊँगा
बरहना हैं बहन मेरी, माँ भी कहाँ इससे जुदा
तुम ही कहो कैसे न! दहशत-ज़दा हो जाऊँगा
आंधियाँ नफरत-ज़दा, तक़रीर है शोला-बयाँ
बाँट कर मैं भाई को, मुल्क-ए-सदा हो जाऊंगा
हर एक घर 'मकान' है, दरो-दीवार है आदमी
वक़्त लफ़्ज़-ख़ोर है, मैं भी ख़ुदा हो जाऊँगा
बद-ख़याली, बद-कलामी, बद-निज़ामी जा-बजा
मत बनो ख़ुश-फ़हम कि शायर बड़ा हो जाऊँगा!
(उन्स= लगाव, फ़ना = नष्ट, ज़र्द=पीला, बरहना= नग्न, शोला-बयाँ = आग उगलने वाली, सदा=आवाज़, बद-निज़ामी= गलत प्रबंध, जा-बजा=हर कहीं)
क़मर सादीपुरी
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ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteबहुत खूब...
पहली दफा आपके ब्लॉग पे आया हूँ शायद...
पर पता नहीं था के पहली दफा में मैं भी आपका फन हो जाऊंगा...
उर्दू का बहुत अच्छा उपयोग पाया है... आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा, आशा है...
आभार !
महेश जी आपका आभार .
ReplyDeleteबहुत उम्दा ।
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
आपका आभार राजपूत जी
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