रात आँखों से बरसी थी शबनम
सुबह बारिश ने सब भिगो डाला
तुम्हें पाने की इक जुस्तजू में
देखो, वजूद भी हमने खो डाला
एक उलझन नहीं सुलझी हमसे
दिल की माला में सब पिरो डाला
चलो, अब बात ही कर ली जाए
दिल में इतना ही जब संजो डाला
अरे, तुम तो हंस के भूल जाओगे
हमने यूं खुद को क्यूँ डुबो डाला
शुभांगिनी राजपूत
(अपनी सखी मानसी की प्रेरणा से लिखी रचना )
सुबह बारिश ने सब भिगो डाला
तुम्हें पाने की इक जुस्तजू में
देखो, वजूद भी हमने खो डाला
एक उलझन नहीं सुलझी हमसे
दिल की माला में सब पिरो डाला
चलो, अब बात ही कर ली जाए
दिल में इतना ही जब संजो डाला
अरे, तुम तो हंस के भूल जाओगे
हमने यूं खुद को क्यूँ डुबो डाला
शुभांगिनी राजपूत
(अपनी सखी मानसी की प्रेरणा से लिखी रचना )
khubsurat rachna..
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