..अकेला प्रेम।।
इन दिनों,
एक फुफकारते नाग सा
मणि तलाश रहा है
जिसे वो
एक अप्सरा के माथे पर
जड़कर भूला था,
आजकल
वो टटोलता है
हर माथा,
खोजता है वही
चमकदार
अनमोल मणि
कभी
ज्ञान के सम्मोहन से
कभी रूप
कभी बुद्धि से
कभी अनजान
कभी दीवाना बनके
लगाता है हज़ार बोलियाँ
पहुंचता है
औरतों के माथे तक
अफ़सोस....
ये वो अप्सरा नहीं
जो माथे पर
प्रेममणि मढ़कर
भाग रही है
खुद को बचाने के लिए
बाज़ार के जौहरियों से.....
औरत जात जो ठहरी।।।
(अकेला प्रेम।।। ....सौ बोलियाँ।।।। ...हज़ार तराजू ।।।)
Mansi Mishra
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
गहन अभिवयक्ति......
ReplyDelete