मेरी हयात में शरीक रहा, जब तेरे नाम का रिश्ता।
मेरा ख्वाब भी बुनता रहा तब तेरे नाम का रिश्ता।
कुछ गिला था तुझसे, शिकवे तेरे भी सुने थे मैंने,
जब तलक रहा मेरे नाम से, तेरे नाम का रिश्ता।
बहुत कोशिशें की, इजहार में तमाम तीज-त्यौहार रीत गये,
कभी चाहा ही नहीं उसने मुझको, रहा नाम का रिश्ता।
उसके दरीचे से बस एक मैं खाली हाथ लौटा हूं,
शायद जिस शख्स के साथ था मेरा, बस नाम का रिश्ता।
मैं उसकी राह कैसे अपने मंजिल की तरफ मोड़ देता,
जिस शख्स का था मेरी मंजिल से बस नाम का रिश्ता।
रविकुमार बाबुल
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मैं उसकी राह कैसे अपने मंजिल की तरफ मोड़ देता,
ReplyDeleteजिस शख्स का था मेरी मंजिल से बस नाम का रिश्ता.. bhut khubsurat rachna hai...
ग़ज़ब ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत
ReplyDeleteBehad badia...
ReplyDeleteye pad ke mera bhi dil kar aaya aapki ghazal mein ek sher jodne ke...gustakhi maafkijiyega
Jise mere jeene ka tamaam maksad samjhte the log
tha wahi meri maut ka saba wo tere naam ka rishta
Pasand na aaya o to fir se khsma chahhta hoon..
आदरणीय सुषमा जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
आपने रचना पसंद की, कविताबाजी पर मेरा आना सार्थक हुआ। कविताबाजी के इस नये रिश्ते और शफर में आप इसी तरह साथ बनीं रहेंगी, उम्मीद करता हूं।
आदरणीय संजय जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
मैं दूसरों के ब्लॉगों की खिड़कियों को जब भी खोलता हूं, आप वहां मिल ही जाते हैं, यकीन मानियेगा तमाम ब्लॉगों की बेहतरीन रचना पर आपकी सार्थक टिप्पणी मेरे आन्नद को दो गुना कर देती है।
भास्कर जी, आप मुझसे कहीं ज्यादा अच्छा लिखते हैं, बस कभी अपने शब्दों को सिलसिलेबार सलीके से सजाकर देखियेगा, फिर जो आपने लिखा है ऐसा ही कुछ आपको अपने बारे में मुझसे अधिक पढऩे को मिलेगा।
यूं ही साथ निभाते रहें?
आदरणीय कुनाल जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
आपके विचारों के लिये शुक्रिया।
आदरणीय ड्रीम सेलर जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
मेरी रचना को मुकम्मल करने के लिये शुक्रिया। आपकी मौजूदगी में इसे अपने साथ रखने की कोशिश करुंगा?
भविष्य में भी आपसे कुछ सीखने का अवसर मिलता रहे ईश्वर की इतनी नेह दृष्टि मुझ पर सदैव बनी रहे यही चाहता हूं।