हर इन्सान में जज्बा है
सच बोलने का फिर भी
वो झूठ से बचा नहीं है |
पहना है हर चेहरे ने
एक नया चेहरा
और जीता है जिन्दगी
जब वो बोझ समझ पर ,
जिन्दगी उसकी सजा नहीं है
वो झूठ से बचा नहीं है |
खुद को पहचान वो
चलता है उन रास्तो पर
जहाँ खुद को जानने की
उसकी कोई रजा नहीं है
वो झूठ से बचा नहीं है|
कहता तो है हर बात
बड़ी ही सच्चाई से पर
नजरें कहती है उसकी
कि उसके पास सच बोलने
की कोई वजह नहीं है
इसलिए ही तो वो
झूठ से बचा नहीं है |
इसमें उसकी खता नहीं है |
- दीप्ति शर्मा
जिन्दगी उसकी सजा नहीं है
ReplyDeleteवो झूठ से बचा नहीं है |...such ko baya karti panktiya hai.. very nice
ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
ReplyDeleteअद्भुत ........... ।
ReplyDeleteकहता तो है हर बात
ReplyDeleteबड़ी ही सच्चाई से पर
नजरें कहती है उसकी
कि उसके पास सच बोलने
की कोई वजह नहीं है
इसलिए ही तो वो
झूठ से बचा नहीं है |
इसमें उसकी खता नहीं है |
ह्र्दय की गहराई से निकली सशक्त रचना |