भीनी भीनी सी मिट्टी की महक आयी
ओस की बूंदों से पत्तो पर चमक आयी
पीछे मुड़कर जब देखा मैंने
तो याद तेरी फिर आयी
अँधेरे को दूर कर सूरज की रोशनी आयी
सन्नाटे को चीरती चिडियों की चहचाहट आयी
राज कई बंद हैं सीने में मेरे
और उन्हें खोलने हँसी तेरी फिर आयी
तेरी बातो का जादू हैं कुछ ऐसा
पत्थर भी सुनने लगे हैं ये कुछ ऐसा
मधुशाला की और बढ़ते हुए मेरे कदमो को रोकने
तेरी नशीली निगाहे फिर आयी
तेरी जुल्फों की छाव ले आये
सोचा था फिर होगी मुलाकात तुझसे
पर तुझे मुझसे छिनने
ज़माने के ये रिवाज फिर आये .
(चिराग )
बहुत ही खुबसूरत और कोमल भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअच्छी कविता है ..बधाई
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