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Friday, March 29, 2013

दुनिया की नजर जो न समझी वो जज्बात समझ लेना मेरे

इस छिपी हुई ख़ामोशी से 
तुम हालात समझ लेना मेरे 

है तंग बहुत रश्म ए  दुनिया 
पर तुम ख़यालात समझ लेना मेरे 

कहने का हक तो नहीं दिया 
पर मन के सवालात समझ लेना मेरे 

दुनिया की नजर जो न समझी 
वो जज्बात समझ लेना मेरे

===============सोनम तिवारी 

Monday, March 18, 2013

अपने हर अक्स का उन्स-ए-फ़ना हो जाऊँगा उसको वफ़ा कहके, कैसे बेवफ़ा हो जाऊँगा

अपने हर अक्स का उन्स-ए-फ़ना हो जाऊँगा
उसको वफ़ा कहके, कैसे बेवफ़ा हो जाऊँगा

बाग़-बतियाँ, फूल-पतियाँ, दर्द-ज़र्द हो जायेंगे
सिर्फ कहने भर से, क्या तुमसे जुदा हो जाऊँगा

बरहना हैं बहन मेरी, माँ भी कहाँ इससे जुदा
तुम ही कहो कैसे न! दहशत-ज़दा हो जाऊँगा 

आंधियाँ नफरत-ज़दा, तक़रीर है शोला-बयाँ
बाँट कर मैं भाई को, मुल्क-ए-सदा हो जाऊंगा

हर एक घर 'मकान' है, दरो-दीवार है आदमी
वक़्त लफ़्ज़-ख़ोर है, मैं भी ख़ुदा हो जाऊँगा

बद-ख़याली, बद-कलामी, बद-निज़ामी जा-बजा
मत बनो ख़ुश-फ़हम कि शायर बड़ा हो जाऊँगा!

(उन्स= लगाव, फ़ना = नष्ट, ज़र्द=पीला, बरहना= नग्न, शोला-बयाँ = आग उगलने वाली, सदा=आवाज़, बद-निज़ामी= गलत प्रबंध, जा-बजा=हर कहीं)

 क़मर सादीपुरी 

Saturday, March 16, 2013

तुम्हारी आंखो में एक तिलिस्म है एक आइना है




Wednesday, March 13, 2013

ज़बाँ पर मेरी, ऐसी ही तासीर रहे, ग़ालिब संग कबीर का होना, दे मौला!

थोड़ा हँसना, थोडा रोना, दे मौला!
दिल से दिल को राहत दो ना, हे मौला!

सात समुंदर पार की बातें कौन करे
अपने आम में मंजर होना, दे मौला!

झूठ की बारिश रंग-बिरंगी होती है
ऐसी छतरी सच की होना, दे मौला!

साए घनेरे बरगद के, कागा बोले
फूल-क्यारी, तोता-मैना, दे मौला!

मय-जंगल ही खिलखिल बच्चे लुप्त हुए
गिल्ली-डंडा, और खिलौना, दे मौला!

गंगा की पीड़ा पर जमना यूँ रोवे
कण-कण चांदी, कण-कण सोना दे मौला!

ज़बाँ पर मेरी, ऐसी ही तासीर रहे
ग़ालिब संग कबीर का होना, दे मौला!

 कमर सादिपुरी 

Friday, March 8, 2013

हर राज़ ले रहा है वो, मुझे ये यकीं दिलाकर, न तिलिस्म जानता है, न कोई जादू-टोना है


नये ख्वाब हैं गर तेरे पहलू में तो कह दे
आज की रात मुझे डर डर के नहीं सोना है

बिना जाने गर ये बाज़ी लगाईं है,तो लौट जा
इश्क के खेल में मुझे ईमान नहीं खोना है

बहुत गहरे हैं ज़ख्म माजी के, तू सुन ले
मेरी इक हद है, और वफादार नहीं होना है

हर राज़ ले रहा है वो, मुझे ये यकीं दिलाकर
न तिलिस्म जानता है, न कोई जादू-टोना है

===================मानसी

(कल की रात......)

Thursday, March 7, 2013

एक मुश्त में दिल दे आया, टुकड़ा टुकड़ा प्यार ख़रीदा


ध्रुव गुप्ता जी की गजल उन्ही की किताब ''मौसम के बहाने से


कुछ दहशत हर बार ख़रीदा
जब हमने अख़बार ख़रीदा

जींस भाव बाज़ार आपके
हमने क्या सरकार ख़रीदा

कतरा कतरा लहू बेचकर
एक दुनिया बीमार ख़रीदा

सच पे सौ सौ परदे डाले
फिर सपने दो चार ख़रीदा

ख्वाब दुआ उम्मीद इबादत
जीने के औजार ख़रीदा

उसके भीतर भी जंगल था
कल जिसने घरबार ख़रीदा

एक मुश्त में दिल दे आया
टुकड़ा टुकड़ा प्यार ख़रीदा

हम बेमोल लुटा देते है
तुमने जो हर बार ख़रीदा

एक भोली मुस्कान की ख़ातिर
कितना कुछ बेकार ख़रीदा

प्यार से भी हम मर जाते है
आपने क्यों हथियार ख़रीदा


Monday, March 4, 2013

ग़ज़ल खुद ही समा से उठ बैठी सारे मिसरे, अशआर है तुमसे


कैसे कह दूं एतिबार है तुमसे

इनकार नहीं, इक़रार है तुमसे

ग़ज़ल खुद ही समा से उठ बैठी
सारे मिसरे, अशआर है तुमसे

फ़ासला तो इसे नहीं कहते
सिर्फ यही बार-बार है तुमसे

कितने बाग़ों की सैर की मैंने
आँख क्यों अश्कबार है तुमसे 

क़मर की चाँदनी तुम्ही से है
कि ख़्याल गुलज़ार है तुमसे 

(बार-बार = परेशान होना, क़मर = चाँद )

क़मर सादीपुरी

Friday, March 1, 2013

बस तुम हो और मैं हूँ


बहुत दिनों के बाद असीम ने लिखी कविता जो बेहद पसंद आई


बस तुम हो और मैं हूँ

किस्से हों बातें हों यादें हों

थोड़ी खुशबुएँ, थोड़ी खुशियाँ, थोड़े सपने, थोड़ी रोशनी हो

सब थोड़ा थोड़ा

थोड़ी कहानियाँ हों


छोटे छोटे चुटकुले हो जायें


थोड़ी सी 'देर सुबह' की धुप भी हो


सब कुछ शांत हो, एक दम ठहरा हुआ


फिर पत्तों से कुछ आवाजें आयें 


हमारे चलने की


तुम्हारी हंसी भी होनी चाहिए


हमारे आसपास सपने टंगे हों


एकदम ताज़े ताज़े


तुम हो जाओ और मैं हो जाऊं 


बस और क्या


चाय मंगा लेंगे दो कप.


----------------------असीम त्रिवेदी